उलझनों से उबार लेता एक हाथ है एक स्त्री साथ है साधे हुए मेरी धरती-आकाश जोड़े हुए अपनी आयु मेरी आयु से
हिंदी समय में प्रेमशंकर शुक्ल की रचनाएँ